आलोचना >> भारतीय साहित्य में मुसलमानों का अवदान भारतीय साहित्य में मुसलमानों का अवदानजफर रजा
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प्रो. जाफर रजा की प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी-जगत् के लिए एक मूल्यवान् उपहार है। भारतीय साहित्य के अध्ययन में यह बुनियादी दस्तावेज है
' भारतीय साहित्य में मुसलमानों का अवदान ', एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अन्य है, जिसमें 29 भारतीय भाषाओं की एक साथ चर्चा की गयी है। इसके पूर्व ऐसा नहीं हो सका था। इन समस्त भाषाओं के विकास-क्रम तथा साहित्य-रचना में मुसलमानों का यथेष्ट अवदान रहा है।
भारतीय साहित्य की मूल आत्मा अनेकता में एकता के रूप में ही प्रदर्शित हुई है। असंख्य परम्पराएँ, अनेकानेक बोलियाँ-भाषाएँ, विविध धार्मिक मान्यताएँ, फिर भी भारतीय जन एक सूत्र में बँधे हुए हैं। इस सूत्र को खोजने की प्रक्रिया में केके-बिरला फाउण्डेशन के एक उपयोगी परियोजना के अन्तर्गत प्रस्तुत अन्य की रचना हुई है। इस परियोजना का उद्देश्य विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच समन्वय स्थापित करना था। खेद है कि वर्तमान में यह परियोजना समाप्त की जा चुकी है, अन्यथा ऐसे ही कितने ग्रंथ अस्तित्व में आते।
प्रख्यात् साहित्यकार प्रो. जाफर रजा बिरला फाउण्डेशन की उर्दू समिति के संयोजक तथा चयन परिषद् के सदस्य थे। उन्हें अपनी 'फेलोशिप' प्रदान करके फाउण्डेशन ने उपर्युक्त परियोजना स्वीकार करने का अनुरोध किया, जिसको उन्होंने समय-सीमा के भीतर ही सम्पन्न कर दिया।
प्रो. जाफर रजा की प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी-जगत् के लिए एक मूल्यवान् उपहार है। भारतीय साहित्य के अध्ययन में यह बुनियादी दस्तावेज है।
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